लेखनी कविता - वस्तुतः - भवानीप्रसाद मिश्र

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वस्तुतः / भवानीप्रसाद मिश्र मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए। यानी वन का वृक्ष खेत की मेड़ नदी की लहर दूर का गीत व्यतीत वर्तमान में उपस्थित भविष्य में मैं ...

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